बेमेतरा (सुघर गांव)। 29 जून 2025, जिले के मोहतरा (ख) गांव में पीड़ित शोषित एक परिवार की दिल दहलाने वाली कहानी सामने आया है। सतनामी समाज से ताल्लुक रखने वाले श्यामदास सतनामी और उनके 16 परिजनों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सामूहिक इच्छामृत्यु की अनुमति मांगे है। 14 वर्षों से लगातार सामाजिक बहिष्कार, जातीय हिंसा और प्रशासनिक उपेक्षा की उदासीनता ने इस परिवार को जीने की इच्छा से वंचित कर दिया है। पीड़ित शोषित परिवारो का आरोप है कि वर्ष 2009 में तत्कालीन सरपंच और उप सरपंच ने 50 हजार रुपये लेकर उन्हें शासकीय जमीन पर बसाया था। कठिन परिश्रम से बनाए कच्चे मकान को वर्ष 2011 में गांव के कुछ लोगों ने जातिगत द्वेष के चलते आग के हवाले कर दिया और सामान को लूट पाट कर क्षति ग्रस्त कर दिया गया। वर्ष 2019 में अमानवीयता की हद तब पार हो गया जब परिवार को अर्धनग्न अवस्था में गांव में घुमा कर पुलिस चौकी की सिपाहियों की मौजूदगी में जबरन माफी मांगने को मजबूर किया गया। पीड़ित परिवार की बच्चों को सखी सेंटर में 15 दिन तक रखा गया। वर्ष 2024 में एक बार फिर उनका मकान जेसीबी से ढहा दिया गया। बिजली काट दी गई, और पानी के लिए उन्हें कई किलोमीटरों दूरस्थ स्थलों तक भटकना पड़ा। गत दिनों 18 जून 2025 को बरसात के बीच शासन - प्रशासन ने बिना नोटिस या वैकल्पिक व्यवस्था के उनकी झोपड़ी फिर तोड़ दी गई। अब यह पीड़ित शोषित परिवार खुले आसमान तले बिना छत,बिजली और पानी के जीने को मजबूर है।
जब घर नहीं, जमीन नहीं, समाज का साथ नहीं,तो जीने का हक कैसे?
श्यामदास सतनामी ने कलेक्टर को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपते हुए यह सवाल उठाया। परिवार ने यह पत्र प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री,राज्यपाल, मानवाधिकार आयोग और सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सहित 23 संस्थाओं और दलों को भेजा है।
शासन - प्रशासन की चुप्पी से समाज में व्याप्त आक्रोश
प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज ने त्वरित न्याय न मिलने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे लोकतंत्र पर तमाचा बताया है। जिला प्रशासन ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है।
क्या ‘न्याय सबके लिए’ सिर्फ नारा है?
यह घटना सामाजिक न्याय और प्रशासनिक जवाबदेही पर कई सवाल उठा रहें है। क्या इस पीड़ित शोषित परिवार को इंसाफ मिलेगा,या उनकी पुकार अनसुनी रह जाएगी?
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