नया रायपुर के राखी थाने में पुलिसकर्मी झलका रहे थे खुलेआम जाम,रक्षक के रूप में भक्षक बनने से वर्दी हुआ बदनाम,सच दिखाने पर फिर एक पत्रकार पर हमला
रायपुर (सुघर गांव)। मार्च 14 मार्च 2025, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कानून के रक्षक जब स्वयं कानून तोड़ने पर उतर आएं भक्षक बन जाएं,तो न्याय की उम्मीद किससे की जाएं? नवा रायपुर स्थित राखी थाने में पुलिसकर्मियों द्वारा खुलेआम शराबखोरी और फिर एक पत्रकार पर हमले की घटना ने राजधानी की कानून व्यवस्था पर कई गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है।
शराब पार्टी के साक्षी बने पत्रकार,
तो बना दिए गए अपराधी
पत्रकार मयंक जो रायपुर न्यूज नेटवर्क (RNN24) के रिपोर्टर हैं,अपने परिचित का बयान दर्ज कराने राखी थाने पहुंचे थे। लेकिन वहाँ जो नजारा उन्होंने देखा,वह स्तब्ध करने वाला था, थाने के अंदर ही शराब की बोतलें खुलेआम ले जाई जा रही थीं। जिज्ञासा वश उन्होंने जांच करने का प्रयास किया कि क्या ये बोतलें जब्ती का हिस्सा हैं या किसी केस का ऐविडेंस। लेकिन जब वे थाने के प्रथम तल पर पहुंचे, तो सच्चाई सामने थी। एक प्रधान आरक्षक वर्दी में और 03 पुलिसकर्मी सिविल ड्रेस में जाम छलका रहे थे।
पत्रकारिता का फर्ज निभाते हुए मयंक ने इस पूरी घटना को अपने मोबाइल में कैद करना चाहा,
लेकिन शराब के नशे में चूर पुलिस कर्मियों की गुंडागर्दी तुरंत सामने आ गई। थाने के अंदर ही पुलिसवालों ने न केवल उनका मोबाइल छीन लिया,बल्कि उनके साथ हाथ मोड़कर मारपीट भी किया।
आवेदन देने गए पत्रकार पर FIR से पहले
ही शुरू हो गया लीपापोती अभियान
पत्रकार मयंक ने जब अपना परिचय दिया और आई-कार्ड दिखाया,तब कहीं जा कर पुलिसवालों ने उनका मोबाइल लौटाया। लेकिन सवाल यह है कि क्या एक पत्रकार होने के नाते उनका उत्पीड़न होना जायज़ है? जब साथी पत्रकारों को घटना कि जानकारी मिली,तो वे थाने पहुंचे। लेकिन पुलिस प्रशासन की लापरवाही की हद तब पार हो गई,जब पूरे 02 घंटे तक मयंक का आवेदन स्वीकार ही नहीं किया गया।
आखिरकार, जब अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) विवेक शुक्ला को मामले की सूचना दी गई,तब जा कर आवेदन पर पावती दी गई।
यह कोई पहली बार नहीं, रायपुर पुलिस के कारनामे जारी
यह पहली बार नहीं है जब रायपुर पुलिस का तानाशाही और असंवेदनशील रवैया सामने आया हो। कुछ समय पहले उरला थाने में एक महिला पत्रकार के साथ भी इसी तरह का दुर्व्यवहार किया गया था। उरला थाने के प्रभारी बी.एल.चंद्राकर के सामने जब महिला पत्रकार ने शिकायत की कि उसका मोबाइल आरोपी ने छीन लिया है,तो उल्टे पत्रकार को ही समझाइश दी गई “सेटलमेंट कर लो वरना जान से जाओगे!” सवाल उठता है कि जब राजधानी की पुलिस खुद ही अपराध को बढ़ावा देने में लगी हो,तो जनता की सुरक्षा की जिम्मेदारी आखिर कौन लेगा?
पुलिस की दोहरी नीति - ’निजात’ अभियान
और खुद शराबखोरी
आश्चर्य की बात यह है कि यही पुलिस प्रशासन ‘निजात अभियान’ चलाकर नशे के खिलाफ लोगों को जागरूक करने का ढोंग रचती है। प्रेस को बुलाकर कवरेज करवाने वाली पुलिस खुद जब थाने में शराब पीकर मस्त रहती है, तो इस अभियान की सच्चाई पर सवाल खड़े होते हैं।अब देखने वाली बात यह होगी कि राजधानी की पुलिस अपने इन शराबी आरक्षकों पर कोई कार्यवाही करती है या हमेशा की तरह मामला रफा-दफा कर दिया जाएगा? अगर पत्रकारों के साथ ऐसा हो सकता है, तो आम नागरिकों के साथ पुलिस का व्यवहार कैसा होगा,यह सहज ही समझा जा सकता है।
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